Thursday, 27 May 2021

कोरोना, लॉकडाउन और बेकाबू हालात!


दिन था 30 जनवरी और साल 2020, जब भारत में कोरोना का पहला केस आया।
यह इतिहास का वही मनहूस दिन था, जब मेरे हस्ते खेलते भारत को ना जाने किसकी नजर लग गई।
जब भारत में पहला केस मिला तब किसी को पता नहीं था कि यह पहला केस भारत को कितनी बड़ी तबाही देने वाला है।
समय बिता और एकाएक भारत में केसों की गिनती में वृद्धि होने लगी और कोरोना पर काबू पाने के लिए सरकार द्वारा 25 मार्च 2020 को भारत में 21 दिन का पहला लॉकडाउन लगाया गया।
सभी के मन में यह विश्वास था कि इन इक्कीस दिनों में कोरोना भारत से पूर्ण रूप से खत्म हो जाएगा लेकिन शायद भारत के भाग्य में कुछ और ही लिखा था।
मन में विश्वास था कि सब ठीक हो जाएगा पर लोगों में एक डर भी पनप रहा था कि अगर सब बंद हो जाएगा तो खाने का सामान कहाँ से आएगा।
लॉकडाउन का नाम सुनते ही मानों लोगों में तनाव बढ़ गया और चारों तरफ भगदड़ मच गई, अब हर कोई कोरोना की चिंता छोड़कर अपने घरों में राशन जुटाने के प्रयासों में लग गया और इस भगदड़ ने कोरोना के साथ ही कालाबाजारी को भी दावत दे डाली।
10 रु की मिलने वाली चीजों के दाम 50 हो गए और जरूरत का सामान बाजारों से गायब होने लगा।
यह सिलसिला करीब हफ्ते भर चला और दुकानदारों ने मन भर के लोगों को लूटा।
लेकिन यह तो बस शुरुआत थी।
दिन बीते और 14 अप्रेल 2020 को खबर मिली की लॉकडाउन आगे बढ़ गया और यह जरूरी भी था क्योंकि जिस प्रकार से केस बढ़ रहे थे, लोगों की जान बचाना और उन्हें सुरक्षित रखना, यह बड़ी जिम्मेदारी बन गया था।
लॉकडाउन बढ़ा और घरों में दुकानें सजने लगी, कोई अपने घर पकवान बना रहा था, तो कोई मिठाई, लोगों को अब लॉकडाउन पसंद आने लगा था और आता भी क्यों ना भाई, आखिर भागदौड़ भरी जिंदगी से फुर्सत जो मिल गई थी।
लेकिन इस बीच एक तबका ऐसा भी था, जो नंगे पैर अपने घरों के फासलों को तय कर रहा था, यह थे हमारे मजदूर भाई।
पैरों में छाले, आंखों में आंसू और खाली पेट लिए बस चलते ही जा रहे थे, इस दृश्य को देख भारत के विभाजन के घाव फिर से हरे हो गए। 
जैसे तैसे मिलों का सफर तय किया और जब घर पहुंचे तो राज्य की सरकारों द्वारा उन्हें दरकिनार कर दिया गया और राज्य में घुसने से मनाही कर दी गई।
लेकिन भीड़ की तादाद को देखते हुए राज्य सरकार को अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा और 14 दिन के क्वारटाइन के बाद लोगों को घर भेजा जाने लगा।
यह वह समय था जब भारत ही नहीं पूरा विश्व इस महामारी से जूझ रहा था, कोरोना रूपी राक्षस अपने पैर चारों दिशाओं में फैलाने लगा था।
मौत का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा था, हर प्रयास फैल होते नजर आने लगे थे, केंद्र हो या राज्य सरकार हर प्रयास के बाद भी घुटने टेकने को मजबूर हो गई थी और सारी उम्मीदे दम तोड़ने लगी थी।
लेकिन इस वक्त भी कुछ लोग ऐसे थे जो लगातार भारत की सेवा में जुटे हुए थे, यह थे, डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ, पुलिस, एम्बुलेन्स चालक और सफाई कर्मी जो इस मौत के दौर में भी सीना तानकर देश सेवा में लगे हुए थे।
हमारे डॉक्टर्स अपने घरों को छोड़कर अस्पतालों को ही अपना घर बना चुके थे।
दोस्तों डॉक्टर्स को हम भगवान का रूप कहते है लेकिन अब लग रहा था मानों भगवान ने स्वयं डॉक्टर्स का रूप ले लिया हो। जहां एक तरफ भारत अपनी सलामती के लिए दुआ कर रहा था।
वही कुछ लोग ऐसे भी थे जो देश सेवा में जुटे कोरोना वॉरियर्स पर पथराव और थूकने जैसी नीच हरकतों पर उतर आए थे।
समय बिता, कोरोना केस घटे, 177 दिनों की लंबी लक्ष्मण रेखा टूटी और 18 सितंबर 2020 को लॉकडाउन खुलना शुरू हुआ और सावधानी के साथ लोगों को घरों से बाहर निकलने की आजादी मिली।
चारों तरफ खुशियों की बौछार थी, भारत को अपनी पहली स्वदेशी कोरोना वैक्सीन भी मिल गई थी भारत अब कोरोना को हरा रहा था और लोगों ने बड़ी खुशी के साथ 2020 को विदा कर, 2021 का स्वागत किया।
लेकिन वह कहते है ना कि तूफान आने से पहले की शांति बेहद सुकून देती है लेकिन अपने साथ तबाही लेकर आती है।
ज्यों ही लॉकडाउन खुला लोगों ने कोरोना को हल्के में लेना शुरू कर दिया और शायद कोरोना भी इसी लापहरवाही के इंतजार में था।
2021 के तीन माह तो बड़े ही आराम से बिना किसी चिंता के बीते लेकिन जैसे ही अप्रैल माह की शुरुआत हुई, कोरोना ने पुनः अपने पैर पसारने शुरू कर दिए, इस बार कोरोना और भी अधिक ताकतवर हो चुका था।
मुंबई से केस आने की शुरुआत हुई और दिल्ली समेत कई राज्यों को इसने अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया।
लेकिन यह स्तिथि कितनी भयावह होगी इसका अंदाजा किसी को नहीं था।
भारत की स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ने लगी, और कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने लगी। हालात इतने भयावह होने लगे थे कि कोरोना की रिपोर्ट आते-आते मरीज दम तोड़ चुके होते थे।
हालात फिर बेकाबू होने लगे और इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाया कालाबाजारी ने।
जो ऑक्सीजन सिलेंडर आसानी से उपलब्ध हो जाते थे अब वह हजारों, लाखों रुपए देने के बाद भी नहीं मिल रहे थे।
दवाइयां, इंजेक्शन और जरूरत की आवश्यक चीजों को मानों धरती निगल गई थी।
पिछली बार कोरोना से इंसान मर रहे थे लेकिन अब इंसानियत भी मर रही थी, हर कोई लूट-खसूट में लगा हुआ था।
सब्जियां एवं फल तक के रेट भी उचाइयां छू रहे थे, जहां एक तरफ लोग जरूरत के सामानों के अभाव में दम तोड़ रहे थे, तो वही कुछ लोग अपनी जेब भरने में लगे थे।
भारत को पुनः लॉकडाउन की आवश्यकता थी लेकिन पिछले लॉकडाउन के घाव इतने गहरे थे कि चाह कर भी नहीं लगाया जा सकता था लेकिन फिर से जब हालात बेकाबू होने लगे तो स्तिथि को देखते हुए, राज्य स्तर पर लॉकडाउन का सिलसिला शुरू हुआ। 
अब हालात ऐसे भयावह हो गए थे कि भारत में दिन भर में लाखों केस और हजारों मौतों का सिलसिला शुरू हो गया, हालात बदतर हो चुके थे और कोई समाधान नहीं मिल रहा था।
कोरोना का खौफ थमा भी नहीं था कि अफवाहों का सिलसिला शुरू हो गया, वैक्सीन, ऑक्सीजन एवं दवाइयों के खिलाफ जूठे प्रचार शुरू हो गए।
एक दूसरे से मिलना भी मौत के समान हो गया था, गले मिलना या हाथ मिलाना मानों मौत को दावत देने जैसा हो गया।
हर तीसरे घर में मौत की चीखें सुनाई दे रही थी, हर कोई दुखी था।
अभी तक हालत बदल नही पाए है, स्तिथि स्थिर है, लोगों के रोजगार छीन रहे है, शिक्षा का हाल बुरा है और हर कोई यही दुआ कर रहा है कि जल्द देश को इस कैद से आजादी मिले।
इस स्तिथि में भी देश में कुछ ऐसे महानुभव मौजूद है, जो अपने मतलब की रोटी सेकने में लगे हुए है और एक दूसरे की टांग खींच रहे है।
अब आप सभी सोच रहे होंगे कि इन सब बातों का क्या फायदा ? हालात कौनसे बदलने वाले है ? दोस्तों हालात अब भी बदल सकते है बस जरूरत है तो कुछ बदलावों की।
दोस्तों मैं यह सब आपको इसीलिए बता रहा हूँ कि अभी समय नहीं है, एक दूसरे को नीचा दिखाने का, यह समय है मिल जुलकर इस महामारी को देश से भागने का और जो गलतियां हमने बीते समय में की उन्हें सुधारने का।
मैं आप सभी से यह पुछना चाहता हूं कि क्या आप नहीं चाहते कि हमारी जिंदगी पहले जैसी हो जाए, हम फिर से खुल कर सांस ले पाए और फिर से हमारा देश मुस्कुराएं।
तो फिर क्यों हम गलतियां कर रहे है, क्यों बेवजह बाहर निकल रहे है, क्यों हमें जानना है बाहर क्या हो रहा है, आखिर क्यों बाहर निकलने के बहाने ढूंढने है।
नहीं जरूरत बाहर जाने कि बाहर ना निकलने से हमारे बिज़नेस बंद नहीं हो जाएंगे।
घर पर रहो और अपना व अपने परिवार का ख्याल रखों।
सरकार, समाज या लोगों की गलतियां मत ढूंढो अपने में सुधार करो।
क्योंकि बड़े से बड़े बदलाव लाने के लिए शुरुआत खुद से करनी पड़ती है।
दोस्तों आप स्वयं को सुरक्षित करें देश अपने आप सुरक्षित हो जाएगा।
मैं उम्मीद करता हूँ, आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा।
धन्यवाद।

Monday, 2 March 2020

दिल्ली की काली दोपहर


आपको 24 फरवरी की वो काली दोपहर तो याद होगी ? जी हां काली दोपहर ! शायद आप में से कुछ लोग इस बात से बेखबर होंगे कि 24 फरवरी को क्या हुआ था ? तो चलिए मैं आप सभी को बताता हूं यह वही काला दिन था जब दिल्ली में दंगों की आग ने दिल्ली के जमनापार को झुलसा दिया था।
वैसे तो अब जमनापार का माहौल शांत है लेकिन आज जब मैं बैठा था तो मेरे मन में आया कि मैं आपके समक्ष उस काली दोपहर से जुड़ी कुछ बाते रखू जिन्हें मैंने बेहद करीब से देखा तो चलिए बिना समय व्यर्थ किए मैं आपको उस काली दोपहर से शांति भरी दोपहर तक का पूरा चिट्ठा सुनाता हूं।
बात 24 फरवरी (2020) की दोपहर की है जब करीब 3 बजे मेरे फोन की घंटी बजी जब मैंने देखा कि मेरे घर से फोन आया है तो मैं घबरा गया कि कही कोई अनहोनी ना घट गई हो। सुबह से मन में बैचेनी थी और खबरों से भी एक दूरी सी बनी हुई थी और हुआ भी कुछ ऐसा ही जब मैंने फोन उठाया तो घरवालों की आवाज में एक डर सा महसूस हुआ।
मैंने पुछा कि क्या हुआ ? तो दूसरी तरफ से आवाज आई कि तू जहां भी है वहीं रहना क्योंकि हमारे घरों की तरफ दंगे भड़क गए है और चारों तरफ आग ने अपने पैर पसार रखे है। इतना सुनते ही मैं स्तबध था मेरे पास कहने के लिए शब्द नहीं थे। मैंने अपने दुखी मन के साथ जवाब दिया कि आप सभी अपना ध्यान रखना।
यह सिलसिला रात को सोने तक चलता रहा, लगातार खबरें आ रही थी कि यहां आग लग गई, अरे गोलियां चल रही है, हे राम कई लोग घायल हो गए और शाम तक दिल्ली में गृह युद्ध सा छिड़ गया था चारों तरफ आग लगी हुई थी और घर जाने के लिए सारी राह बंद हो चुकि थी। 
लोगों की कतार पैदल चल रही थी तो मैंने भी पैदल जाने में ही भलाई समझी, मैंने मेट्रों से करीब 4 किलोमीटर का पैदल सफर तय किया और जैसे तैसे अपने घर के पास पहुंचा तो रोड के दोनो तरफ आग भड़की हुई थी।
किसी समय पर एक दूसरे के त्यौहारों में शरीक होने वाले भाई एक दूसरे को मारने पर उतारू थे, मैंने अपने दोस्त को फोन करके बुलाया और वो मुझे अपने घर लेकर चला गया इसके बाद मैंने फिर अपने घर पर फोन किया कि क्या मैं आजाऊं ? तो घर वालों का जवाब था कि तू जहां हैं वहीं सुरक्षित हैं तो आज वहीं रूक जा कल जब दंगे शांत होंगे तो घर आ जाईयों।
लेकिन यह कोई आम आग थोड़ी थी जो इतनी जल्दी बुझ जाती, रात भर जब भी झपकी लगती तो आग की लपटों की गरमाहट भरे सपने नींद तोड़ देते। रात भर नींद से मेरी जंग चलती रही और जैसे-तैसे झपकी लगी और जब सुबह-सुबह आंख खुली तो खबर मीली की दंगे और भड़क गए है और अब तो गोलियां भी चल रही है, परंतु सिलसिला यहीं कहां शांत होने वाला था एकाएक मरने वालों का आंकड़ा बढ़ने लगा और 'हक' की लड़ाई 'धर्म' की लड़ाई में तब्दील हो गई।
अब मरने वाला इंसान नहीं था अब वो मांस और हड्डी का पुतला हिंदु-मुस्लमान बन गया था। इसके बाद शाम को खबर आई कि जमनापार के सभी इलाकों में कर्फयू लग गया है लेकिन ये धर्म की लड़ाई अभी कहां शांत होने वाली थी।
सिलसिला फिर भी भड़का रहा और अंत में जब देखते ही गोली मारने के ऑर्डर आए तब कहीं जाकर यह मामला शांत हुआ।
रात सुकुन में बीती एक नई सुबह की किरणों ने दिल्ली के जमनापार ईलाके से डर के साये को भगाया लेकिन मामला अभी रूका नहीं था, मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही थी और इन हालातों को देखकर मन में गुस्सा था। 
गुस्सा इसलिए नहीं था कि मरने वाला हिंदु था या मुस्लमान बल्कि गुस्सा इस बात का था कि इन दंगों की भेट वो चढ़े थे जो हिन्दु-मुस्लमान होने से पहले किसी के बेटे, भाई, पिता और सुहाग थे।
हमारी दिल्ली जो देश की राजधानी है देश के सभी बड़े-छोटे फैसले जहां लिए जाते है वो दिल्ली आग की लपटो में जल रही थी और जिन लोगों की वजह से जल रही थी वो पहले ही अपने परिवार को सुरक्षित जगहों पर लेकर बैठकर इस बंदर बाट का लुफ्त उठा रहे थे, अब मरने वाला हिंदु या मुस्लमान नहीं था बल्कि कुदरत का बनाया हुआ सबसे अदबुत 'नूर' इंसान था।

Monday, 3 June 2019

देश की राजनीति


देश की राजनीति अब समझ नहीं आती की, क्या चल रहा है देश में ? अब तो ऐसा लगता है मानों मीडिया बच्चा और लोकतंत्र खिलोना बन गया है, जिसका मन करता है वो खेल लेता है। अब तो बसों और मेट्रो में सफर करने में भी डर लगता है।
हां मैं हिंदू हूं, मुसलमान नहीं (मेरा इस पोस्ट को लिख कर किसी धर्म विशेष को चोट पहुचाने का मकसद नहीं है) पर फिर भी हिंदुत्व के नाम पर जो देश में चल रहा हैं उसे देख कर मन सहम जाता है, क्योंकि ना जाने किस मोड़ पर कोई भक्त टकरा जाए और आपको गौ मास या फिर मेरे सवाल करने पर मुझे मार दे।
माना हिंदू शब्द को सुन कर मन में शेर होने की अनुभूति (Feeling) होती है, परंतु आप शायद यह भूल गए कि शेर जंगल का राजा कहलाता है और राजा कभी अपनी प्रजा को दुख नहीं पहुंचाता, पर फिर भी आप अगर हिंदुत्व के नाम पर किसी को मार कर अपने हिंदू होने पर गर्व करते है तो शायद यह आपकी गलती है।
अरे हिंदू होने से पहले आप एक इंसान है और एक बार जरा देश का इतिहास उठा कर देख लो आज तक किसी भी हिंदू ने बेवजह किसी अन्य धर्म को ठेस या दुख नहीं पहुंचाया। तो लोगों या नेताओं की सुनना बंद करो क्योंकि नेताओं का तो काम होता है भड़काना और फायदा उठा कर सत्ता की कुर्सी पर बैठ जाना।
अगर आपको मेरी बात सुनकर दुख पहुंचा हो या फिर मुझे गाली देने का मन करे तो कमेंट करने में कोई पैसे नहीं लगते आप वहां लिख सकते हो, बस कुछ भी लिखने से पहले आप मुझे एक जवाब जरूर दिजिएगा कि क्या आज तक के इतिहास में दंगों में कोई भी नेता मरा है क्या ?
मैं जानता हूं की आपका जवाब ना होगा। अरे भाई नींद से जागो हम 21वी सदी में जी रहे है और आप एक पढ़े लिखे परिवार से आते हो तो किसी नेता या धर्म के नाम पर देश को बांटने वाले लोगों की बातों को दिल से लगाना बंद करो।
और अंत में मैं आपसे यही कहूंगा कि अगर आपको मेरी बात सुनकर ठेस पहुंची हो तो मुझे माफ करना दोस्तों, मैं ऐसा ही हूं और खुल के लिखना मेरा कर्तव्य है, क्योंकि ना जाने कैसे पर हां मैं पत्रकार हूं, लेकिन आज के पत्रकारों को देख कर मुझे अपने आप को पत्रकार कहने में दुख होता है क्योंकि इन लोगों ने पत्रकारिता को छिन्न-भिन्न कर दिया है।
धन्यवाद।           

Thursday, 11 April 2019

चुनाव और मतदान



चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें एक आम आदमी अपनी सबसे बड़ी ताकत अपने मत का इस्तेमाल करके अपने भविष्य के 5 सालों की बेहतरी के लिए एक व्यक्ति का चयन करता है। परंतु आज के समय में लोग जिंदगी की भागदौड़ में इतने व्यस्त हो गए है कि वह मतदान करना भी जरूरी नहीं समझते।
लेकिन आज मैं आपको मतदान से जुड़ी कई ऐसी बाते बताने जा रहा हूं जिसे पढ़ने के बाद शायद आपका मन मतदान के लिए जरूर करेगा। दरअसल चुनाव हर 5 साल में होते है और कोई ना कोई पार्टी चुनाव जीतती है।
और हर चुनावों के बाद हम उस पार्टी और उनके नेताओं को कोसना शुरू कर देते है कि यह नेता बेकार है, हमारा प्रधामंत्री चोर है और भी कई ऐसी बाते लेकिन क्या आप जानते है कि एक गलत नेता और पार्टी को जीताने वाले आप ही लोग है।
दरअसल आप तो कह देते है कि मैं मतदान करने नहीं जाऊंगा और वैसे भी मेरे एक के वोट डालने ना डालने से क्या फर्क पड़ता है लेकिन चुनावों के समय अपने मन को समझाने के बजाए आप जरा इस बात पर भी विचार करें कि क्या पता आपके एक वोट ना डालने के चलते एक अच्छा और मेहनती नेता हार जाए।
अंत में मैं बस आप लोगों से यही गुजारिश करना चाहूंगा कि किसी के कहने या किसी नेता के चुनावी वादों के चुंगल में ना फंस कर आप अपने मत का सही प्रयोग करें क्योंकि आपको बहलाने वाला नेता अगर इतना ही अच्छा है और मेहनती है तो उसे आपके आगे वोट की भीख मांगने की क्या जरूरत।
विचार करें क्योंकि आपका एक वोट भी कर सकता है भारत के बेहतर भविष्य का फैसला।

Sunday, 7 April 2019

कौन है राहुल गांधी ?


अगर मैं आपसे राहुल गांधी के बारे में पुछु कि कौन है राहुल गांधी ? तो आप के मन मे सबसे पहले जो शब्द आएगा वो है पप्पू और अन्य कई ऐसे नाम जो एक व्यक्ति की हिम्मत तोड़ने के लिए काफी है परंतु इससे आगे आप राहुल गांधी की व्याख्या नहीं कर पाएंगे। अब आप सोच रहे होंगे कि आज मैं राहुल गांधी का मुद्दा क्यों लेकर आया हूं।
ताकि किसी गलत जानकारी के चलते आप अपने किमती वोट का इस्तेमाल किसी गलत व्यक्ति को जीताने के लिए ना करे। आज जो बाते में आपके समक्ष रखने जा रहा हूँ वो आपको बुरी तो लगेगी और शायद आप मुझे गाली भी दे।
लेकिन यह सच्चाई है और इसे जानना भी आपके लिए बेहद जरूरी है क्योंकि किसी व्यक्ति विशेष की जानकारी के बावजूद उसे गलत समझ लेना यह तो सही नहीं है ना दोस्तों।
आइए अब शुरू करते है आप इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को जानते ही होंगे अब आप सोच रहे होंगे कि हां भाई हम इन्हें भी जानते है और यह भी जानते है कि राहुल गांधी भी इन्ही के परिवार का हिस्सा है लेकिन क्या आप जरा यह विचार करे कि एक व्यक्ति जो देश के अमीर लोगों में पहले नंबर पर आता हो उसे सत्ता की गद्दी की क्या जरूरत।
जो व्यक्ति विश्व में कही भी जाकर रह सकता है और अपने पैसों से जिंदगी भर बिना किसी मेहनत के अपनी जिंदगी अराम से बीता सकता हो उसे राजनीति की क्या जरूरत। भारत में जिसकी दादी और पिता के नाम के एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, सड़के और मार्ग हो उसे नाम कमाने की क्या जरूरत।
आप ही बताए कि जो व्यक्ति अपनी जिंदगी ऐस और अराम से काट सकता है उस व्यक्ति को गर्मी में धक्के खाने की क्या जरूरत। दरअसल राहुल गांधी वो शख्सियत है जो जीतने के लिए नहीं लड़ रहा बल्कि अपने पिता और दादी की पार्टी को बचाए रखने के लिए यह लड़ाई लड़ रहा है।
अब मैं अगर हमारे देश के प्रधानमंत्री की ही बात कर लू तो आप कहेंगे कि मोदी जी ने गरीबी देखी है वो तो चाय बेचते थे और उन्होंने तो देश सेवा के लिए शादी भी नहीं कि परंतु इन बातों को सुनकर मुझे कन्हेया कुमार के वो शब्द याद आ गए कि शादी तो गब्बर सिंह की भी नहीं हुई थी तो वो चोरी किसके लिए करता था।
अरे भाई शादी और बच्चे ना होना ईमानदारी का कोई सर्टिफिकेट थोड़ी है। तो अब जरा आप भी विचार करे और सोच समझकर अपने मत का इस्तेमाल करे और अंत में मैं धन्यवाद करना चाहूंगा मेरे बड़े भाई विशाल सिंह का जिन्होंने इस बात को आप लोगों के समक्ष लाने के लिए मुझे प्रेरित किया।
धन्यवाद




Tuesday, 1 January 2019

आप ही बताओ हम कैसे भूल जाए ?

  • वो कहते है हम विकास की लहर लाएंगे पर आप ही बताओ कि हम बदहाली से जूझ रहे अपने देश को कैसे भूल जाए ?
  • वो कहते है हम नाम बदलकर बदलाव लाएंगे पर हम उन्हें कैसे समझाएं कि नाम बदलने से कुछ नहीं होता बदलाव के लिए पहले सोच बदलनी जरूरी है बदलाव अपने आप आ जाएगा।
  • वो कहते है हम बुलट ट्रैन चलाएंगे पर आप ही बताओ हम चल रही ट्रेनों की बदहाली को कैसे भूल जाए ?
  • वो कहते है हम राम मंदिर बनाएंगे पर आप ही बताओ कि जो 4 साल में नहीं हो पाया वो बीते 6 महीने में कैसे कर पाओगे ?
  • वो कहते है हम किसानों के लिए नई स्कीम लाएंगे पर आप ही बताओ हम दिल्ली में हुई किसानों के साथ उस बदसलूकी को कैसे भूल जाए ?
  • वो कहते है हम गौ हत्या पर रोक लगाएंगे पर आप ही बताओ हम देश में हो रहे गऊ माता पर अत्याचारों को कैसे भूल जाए ?
  • वो कहते है हम घर-घर बिजली पहुंचाएंगे पर आप ही बताओ हम गांवों के उन अंधेरे में धंस रहे घरों को कैसे भूल जाए ?
  • वो कहते है हम काला धन वापस लाएंगे पर आप ही बताओं हम देश के हजारों करोड़ लेकर भाग गए माल्या और मोदी को कैसे भूल जाए ?
  • वो कहते है हम रेप की घटनाओं पर रोक लगाएंगे पर आप ही बताओ साहब हम दर्द से तड़पती अपनी लोडो की चिल्लाहट को कैसे भूल जाए ?
  • वो कहते है हम एक के बदले 10 सिर लाएंगे पर आप ही बताओ कि देश की सरहद पर लगातार पाकिस्तान की नापाक हरकतों के चलते शहीद हो रहे अपने जवानों की कुर्बानी को कैसे भूल जाए ?

Friday, 8 June 2018

मेरे देश को ना जाने हुआ क्या ?

अन्नदाता खाने को हो रहा परेशान, दलितों पर पड़ रही अत्याचारों की मार, लाडो हुई लाचार मेरे देश को ना जाने हुआ क्या ? पानी को तरस रहा इंसान महंगाई और भूख की पड़ रही है मार मेरे देश को ना जाने हुआ क्या ? आज देश का हाल देख दिल से निकली आवाज भाई भाई की जान लेने को तैयार, जातीवाद से देश में लग रही है आग मेरे देश को ना जाने हुआ क्या ?

आज जब मैं अपने देश का हाल बदहाल होते देख रहा हूं तो दिल में एक दर्द उमड़ रहा है, मेरी आत्मा रो रही है मेरा दिल जल रहा है लगता है कि अब मेरा वो पुराना भारत नहीं रहा, मेरा वो देश अब नहीं रहा जहां भाई भाई में प्यार हुआ करता था जहां हिंदू के त्योहार में और मुसलमानों की ईद में बिना भेदभाव के भाई से भाई गले मिला करता था। मेरा वो भारत ना जाने कहां खो गया ? जहां किसानों की लहलहाती फसले देश का गौरव कहलाती थी।