Thursday, 27 May 2021

कोरोना, लॉकडाउन और बेकाबू हालात!


दिन था 30 जनवरी और साल 2020, जब भारत में कोरोना का पहला केस आया।
यह इतिहास का वही मनहूस दिन था, जब मेरे हस्ते खेलते भारत को ना जाने किसकी नजर लग गई।
जब भारत में पहला केस मिला तब किसी को पता नहीं था कि यह पहला केस भारत को कितनी बड़ी तबाही देने वाला है।
समय बिता और एकाएक भारत में केसों की गिनती में वृद्धि होने लगी और कोरोना पर काबू पाने के लिए सरकार द्वारा 25 मार्च 2020 को भारत में 21 दिन का पहला लॉकडाउन लगाया गया।
सभी के मन में यह विश्वास था कि इन इक्कीस दिनों में कोरोना भारत से पूर्ण रूप से खत्म हो जाएगा लेकिन शायद भारत के भाग्य में कुछ और ही लिखा था।
मन में विश्वास था कि सब ठीक हो जाएगा पर लोगों में एक डर भी पनप रहा था कि अगर सब बंद हो जाएगा तो खाने का सामान कहाँ से आएगा।
लॉकडाउन का नाम सुनते ही मानों लोगों में तनाव बढ़ गया और चारों तरफ भगदड़ मच गई, अब हर कोई कोरोना की चिंता छोड़कर अपने घरों में राशन जुटाने के प्रयासों में लग गया और इस भगदड़ ने कोरोना के साथ ही कालाबाजारी को भी दावत दे डाली।
10 रु की मिलने वाली चीजों के दाम 50 हो गए और जरूरत का सामान बाजारों से गायब होने लगा।
यह सिलसिला करीब हफ्ते भर चला और दुकानदारों ने मन भर के लोगों को लूटा।
लेकिन यह तो बस शुरुआत थी।
दिन बीते और 14 अप्रेल 2020 को खबर मिली की लॉकडाउन आगे बढ़ गया और यह जरूरी भी था क्योंकि जिस प्रकार से केस बढ़ रहे थे, लोगों की जान बचाना और उन्हें सुरक्षित रखना, यह बड़ी जिम्मेदारी बन गया था।
लॉकडाउन बढ़ा और घरों में दुकानें सजने लगी, कोई अपने घर पकवान बना रहा था, तो कोई मिठाई, लोगों को अब लॉकडाउन पसंद आने लगा था और आता भी क्यों ना भाई, आखिर भागदौड़ भरी जिंदगी से फुर्सत जो मिल गई थी।
लेकिन इस बीच एक तबका ऐसा भी था, जो नंगे पैर अपने घरों के फासलों को तय कर रहा था, यह थे हमारे मजदूर भाई।
पैरों में छाले, आंखों में आंसू और खाली पेट लिए बस चलते ही जा रहे थे, इस दृश्य को देख भारत के विभाजन के घाव फिर से हरे हो गए। 
जैसे तैसे मिलों का सफर तय किया और जब घर पहुंचे तो राज्य की सरकारों द्वारा उन्हें दरकिनार कर दिया गया और राज्य में घुसने से मनाही कर दी गई।
लेकिन भीड़ की तादाद को देखते हुए राज्य सरकार को अपना यह फैसला वापस लेना पड़ा और 14 दिन के क्वारटाइन के बाद लोगों को घर भेजा जाने लगा।
यह वह समय था जब भारत ही नहीं पूरा विश्व इस महामारी से जूझ रहा था, कोरोना रूपी राक्षस अपने पैर चारों दिशाओं में फैलाने लगा था।
मौत का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा था, हर प्रयास फैल होते नजर आने लगे थे, केंद्र हो या राज्य सरकार हर प्रयास के बाद भी घुटने टेकने को मजबूर हो गई थी और सारी उम्मीदे दम तोड़ने लगी थी।
लेकिन इस वक्त भी कुछ लोग ऐसे थे जो लगातार भारत की सेवा में जुटे हुए थे, यह थे, डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ, पुलिस, एम्बुलेन्स चालक और सफाई कर्मी जो इस मौत के दौर में भी सीना तानकर देश सेवा में लगे हुए थे।
हमारे डॉक्टर्स अपने घरों को छोड़कर अस्पतालों को ही अपना घर बना चुके थे।
दोस्तों डॉक्टर्स को हम भगवान का रूप कहते है लेकिन अब लग रहा था मानों भगवान ने स्वयं डॉक्टर्स का रूप ले लिया हो। जहां एक तरफ भारत अपनी सलामती के लिए दुआ कर रहा था।
वही कुछ लोग ऐसे भी थे जो देश सेवा में जुटे कोरोना वॉरियर्स पर पथराव और थूकने जैसी नीच हरकतों पर उतर आए थे।
समय बिता, कोरोना केस घटे, 177 दिनों की लंबी लक्ष्मण रेखा टूटी और 18 सितंबर 2020 को लॉकडाउन खुलना शुरू हुआ और सावधानी के साथ लोगों को घरों से बाहर निकलने की आजादी मिली।
चारों तरफ खुशियों की बौछार थी, भारत को अपनी पहली स्वदेशी कोरोना वैक्सीन भी मिल गई थी भारत अब कोरोना को हरा रहा था और लोगों ने बड़ी खुशी के साथ 2020 को विदा कर, 2021 का स्वागत किया।
लेकिन वह कहते है ना कि तूफान आने से पहले की शांति बेहद सुकून देती है लेकिन अपने साथ तबाही लेकर आती है।
ज्यों ही लॉकडाउन खुला लोगों ने कोरोना को हल्के में लेना शुरू कर दिया और शायद कोरोना भी इसी लापहरवाही के इंतजार में था।
2021 के तीन माह तो बड़े ही आराम से बिना किसी चिंता के बीते लेकिन जैसे ही अप्रैल माह की शुरुआत हुई, कोरोना ने पुनः अपने पैर पसारने शुरू कर दिए, इस बार कोरोना और भी अधिक ताकतवर हो चुका था।
मुंबई से केस आने की शुरुआत हुई और दिल्ली समेत कई राज्यों को इसने अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया।
लेकिन यह स्तिथि कितनी भयावह होगी इसका अंदाजा किसी को नहीं था।
भारत की स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ने लगी, और कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने लगी। हालात इतने भयावह होने लगे थे कि कोरोना की रिपोर्ट आते-आते मरीज दम तोड़ चुके होते थे।
हालात फिर बेकाबू होने लगे और इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाया कालाबाजारी ने।
जो ऑक्सीजन सिलेंडर आसानी से उपलब्ध हो जाते थे अब वह हजारों, लाखों रुपए देने के बाद भी नहीं मिल रहे थे।
दवाइयां, इंजेक्शन और जरूरत की आवश्यक चीजों को मानों धरती निगल गई थी।
पिछली बार कोरोना से इंसान मर रहे थे लेकिन अब इंसानियत भी मर रही थी, हर कोई लूट-खसूट में लगा हुआ था।
सब्जियां एवं फल तक के रेट भी उचाइयां छू रहे थे, जहां एक तरफ लोग जरूरत के सामानों के अभाव में दम तोड़ रहे थे, तो वही कुछ लोग अपनी जेब भरने में लगे थे।
भारत को पुनः लॉकडाउन की आवश्यकता थी लेकिन पिछले लॉकडाउन के घाव इतने गहरे थे कि चाह कर भी नहीं लगाया जा सकता था लेकिन फिर से जब हालात बेकाबू होने लगे तो स्तिथि को देखते हुए, राज्य स्तर पर लॉकडाउन का सिलसिला शुरू हुआ। 
अब हालात ऐसे भयावह हो गए थे कि भारत में दिन भर में लाखों केस और हजारों मौतों का सिलसिला शुरू हो गया, हालात बदतर हो चुके थे और कोई समाधान नहीं मिल रहा था।
कोरोना का खौफ थमा भी नहीं था कि अफवाहों का सिलसिला शुरू हो गया, वैक्सीन, ऑक्सीजन एवं दवाइयों के खिलाफ जूठे प्रचार शुरू हो गए।
एक दूसरे से मिलना भी मौत के समान हो गया था, गले मिलना या हाथ मिलाना मानों मौत को दावत देने जैसा हो गया।
हर तीसरे घर में मौत की चीखें सुनाई दे रही थी, हर कोई दुखी था।
अभी तक हालत बदल नही पाए है, स्तिथि स्थिर है, लोगों के रोजगार छीन रहे है, शिक्षा का हाल बुरा है और हर कोई यही दुआ कर रहा है कि जल्द देश को इस कैद से आजादी मिले।
इस स्तिथि में भी देश में कुछ ऐसे महानुभव मौजूद है, जो अपने मतलब की रोटी सेकने में लगे हुए है और एक दूसरे की टांग खींच रहे है।
अब आप सभी सोच रहे होंगे कि इन सब बातों का क्या फायदा ? हालात कौनसे बदलने वाले है ? दोस्तों हालात अब भी बदल सकते है बस जरूरत है तो कुछ बदलावों की।
दोस्तों मैं यह सब आपको इसीलिए बता रहा हूँ कि अभी समय नहीं है, एक दूसरे को नीचा दिखाने का, यह समय है मिल जुलकर इस महामारी को देश से भागने का और जो गलतियां हमने बीते समय में की उन्हें सुधारने का।
मैं आप सभी से यह पुछना चाहता हूं कि क्या आप नहीं चाहते कि हमारी जिंदगी पहले जैसी हो जाए, हम फिर से खुल कर सांस ले पाए और फिर से हमारा देश मुस्कुराएं।
तो फिर क्यों हम गलतियां कर रहे है, क्यों बेवजह बाहर निकल रहे है, क्यों हमें जानना है बाहर क्या हो रहा है, आखिर क्यों बाहर निकलने के बहाने ढूंढने है।
नहीं जरूरत बाहर जाने कि बाहर ना निकलने से हमारे बिज़नेस बंद नहीं हो जाएंगे।
घर पर रहो और अपना व अपने परिवार का ख्याल रखों।
सरकार, समाज या लोगों की गलतियां मत ढूंढो अपने में सुधार करो।
क्योंकि बड़े से बड़े बदलाव लाने के लिए शुरुआत खुद से करनी पड़ती है।
दोस्तों आप स्वयं को सुरक्षित करें देश अपने आप सुरक्षित हो जाएगा।
मैं उम्मीद करता हूँ, आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा।
धन्यवाद।